25/10/2022,सीएम धामी ट्वीट। उत्तराखण्ड के लोकपर्व ईगास-बग्वाल पर भी इस बार राजकीय अवकाश रहेगा इसकी घोषणा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने की है। इससे पहले पिछले साल पहली बार इस लोकपर्व पर अवकाश घोषित किया गया था और अब ये दूसरा मौक़ा होगा जब उत्तराखण्ड में लोकपर्व ईगास पर सार्वजनिक अवकाश होगा।
सीएम धामी ने पहाड़ी भाषा मे ट्वीट कर लिखा है कि “आवा! हम सब्बि मिलके इगास मनोला नई पीढ़ी ते अपणी लोक संस्कृति से जुड़ोला। लोकपर्व ‘इगास’ हमारु लोक संस्कृति कु प्रतीक च। ये पर्व तें और खास बनोण का वास्ता ये दिन हमारा राज्य मा छुट्टी रालि, ताकि हम सब्बि ये त्योहार तै अपणा कुटुंब, गौं मा धूमधाम से मने सको । हमारि नई पीढी भी हमारा पारंपरिक त्यौहारों से जुणि रौ, यु हमारु उद्देश्य च।”
आवा! हम सब्बि मिलके इगास मनोला
नई पीढ़ी ते अपणी लोक संस्कृति से जुड़ोलालोकपर्व 'इगास' हमारु लोक संस्कृति कु प्रतीक च। ये पर्व तें और खास बनोण का वास्ता ये दिन हमारा राज्य मा छुट्टी रालि, ताकि हम सब्बि ये त्योहार तै अपणा कुटुंब, गौं मा धूमधाम सै मने सको।
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) October 25, 2022
क्या है उत्तराखंड का लोकपर्व इगास?
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार जब भगवान श्री राम 14 वर्ष बाद लंका विजय कर अयोध्या पहुंचे तो लोगों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्योहार के रूप में मनाया । लेकिन कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में लोगों को इसकी जानकारी 11 दिन बाद मिली । इसलिए यहां पर दीपावली के 11 दिन बाद यह दीवाली ( इगास ) मनाई जाती है ।वहीँ दूसरी और सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे । करीब 400 साल पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा । इसी बीच बग्वाल ( दीपावली ) का त्यौहार भी था , परन्तु इस त्यौहार तक कोई भी सैनिक वापिस ना आ सका । सबने सोचा माधो सिंह और उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए , इसलिए किसी ने भी दीपावली ( बग्वाल ) नहीं मनाई ,लेकिन दीपावली के ठीक 11 वें दिन माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापिस लौट आए ।
कहा जाता है कि युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई थी । उस दिन एकादशी होने के कारण इस पर्व को इगास नाम दिया गया और उसी दिन से गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली के 11 दिन बाद इगास पर्व मनाया जाता है । इगास पर्व के दिन लोग घरों की लिपाई – पुताई कर पारम्परिक पकवान बनाते है । गाय – बैलों की पूजा की जाती और रात को पूरे उत्साह के साथ गाँव में एक जगह इकठ्ठे होकर भैलो खेलते । भैलो का मतलब एक रस्सी से है , जो पेड़ों की छाल से बनी होती है । इगास – बग्वाल के दिन लोग रस्सी के दोनों कोनों में आग लगा देते हैं और फिर रस्सी को घुमाते हुए भैलो खेलते हैं ।