हल्द्वानी। एक तरफ सरकार राज्य की सड़कों को गड्ढा मुक्त कराने की बात करती है वहीं दूसरी तरफ नगर निगम इन आदेश को ठंडे बस्ते में डाल देती है। इतना ही नहीं कार्यशैली पर सवाल उठाने वालों के लिए विभाग के पास बजट का बहाना भी तैयार रहता है। इन सब के बीच अगर किसी को संभलना है तो वो है खुद स्थानीय लोग जो मशीन की तरह 5 साल में एकबार इस्तेमाल होकर सुविधा के अनुसार रख दिए जाते है। आपको बता दे की कुमाऊं का मुख्य द्वार कहे जाने वाले हल्द्वानी में जहां जायेंगे गड्डा युक्त सड़क पायेंगे। ये गड्डे इतने बड़े है कि कई बार लोग चोटिल हो चुके है और बारिश के दिनों में राहगीरों के चोटिल होने का खतरा और बढ़ जाता है। बावजूद इसके नगर निगम ने रोड कटिंग से प्राप्त हुए करीब 2.5 करोड़ रुपया अन्य निर्माणों में खर्च कर दिया जबकि यह सड़क के गड्ढे भरने में कोई दिलचस्पी नही दिखाई गई।
जिसके चलते हाल यह है कि नगर निगम की 60 प्रतिशत सड़कें गड्ढों के कारण चलने लायक नहीं है। नगर निगम के पास करीब 563 किलोमीटर पक्की सड़क है। इसमें से करीब 60 प्रतिशत सड़क गड्ढों से पटी पड़ी है। नगर निगम ने शासन का एक आदेश दिखाते हुए निगम सीमा की आंतरिक सड़कों को लोक निर्माण विभाग से वापस ले लिया था। इसी के साथ ही नगर निगम क्षेत्र की सड़कों का स्वामित्व नगर निगम के पास आ गया। अब इसका रखरखाव नगर निगम को ही करना है।
नगर निगम सड़क पर गैस पाइप लाइन, ओएफसी केबल, पानी की लाइन बिछाने के एवज में विभागों से रोड कटिंग वसूल रहा है। नगर निगम ने इससे करीब 2.5 करोड़ रुपया वसूल किया लेकिन ऐसे पैसे का प्रयोग नगर निगम ने अन्य विकास कार्यों में कर दिया। नगर निगम के सूत्रों के अनुसार रोड कटिंग का पैसा रोड सही करने के लिए किया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
हल्द्वानी के गड्ढों पर जिला प्रशासन पिछले कई सालों से यही कहता आ रहा है कि गड्ढों के मामलों में जिला प्रशासन ही नही बल्कि शासन भी गंभीर है जल्द ही नैनीताल जिले की सड़कों में हो रहे गड्ढों को ठीक कर लिया जाएगा.
अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि, हल्द्वानी की जनता को गड्ढें वाली सड़कों से कब तक निजात मिलेगी. फिलहाल जनता तो केवल आस ही लगा सकती है, क्योंकि सड़के दुरुस्त करने वाले जिम्मेदार नेता और अफसर कुंभकरण की नींद में सोए हुए हैं।
नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय ने बताया कि नगर निगम को रोड कटिंग में करीब 2.5 करोड़ के आसपास मिला था। यह पैसा बोर्ड फंड में आता है। बोर्ड को अधिकार होता है कि वह इस पैसे को कहा खर्च करे।