पर्वतीय क्षेत्रों में पिछले शनिवार से हो रही लगातार बारिश और ओलावृष्टि के बाद अब वन विभाग ने राहत की सांस ली है। बारिश होने के कारण जिले के कई क्षेत्रों में आग से धधक रहे जंगल अब शांत हो गए हैं। जनवरी महीने की बात करें तो बारिश ना होने के कारण जिले में वनाग्नि की करीब बारह घटनाओं में 11 हेक्टेयर जंगल जलकर पूरी तरह खाक हो गए थे और उन्हें बचाना विभाग के लिए एक चुनौती बन गया था।
इस बार शीतकाल में बारिश ना होने के कारण जनवरी महीने में से ही जिले के जंगल वनाग्नि की चपेट में आना शुरू हो गए थे। फायर सीजन के शुरू होने से पहले और ठंड का मौसम होने के बाद भी जंगलों में लग रही आग वन विभाग के अधिकारियों के लिए चुनौती साबित हो रहा था। जनवरी महीने की बात करें वनाग्नि की 12 घटनाओं में जिले के पनुवानौला, स्यालीधार, जागेश्वर, स्याहीदेवी, बिमौला, करबला, लोधिया, डोलीडाना और कालीमठ आदि क्षेत्रों में करीब 22 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गए। जिससे लाखों रुपये की वन संपदा को भी नुकसान पहुंचा। हालांकि वनाग्नि की घटनाओं के बारे में पूछले पर अधिकारी आग नाप खेतों में लगने की बात करते रहे और किरकिरी से बचने के लिए विभाग ने इन घटनाओं को अपने रिकार्ड में दर्ज भी नहीं किया। लेकिन इसके बाद भी वन विभाग की टीमें आग बुझाने के लिए जाती रही। ग्रामीणों का कहना था कि वन विभाग अपनी नाकामी छिपाने के लिए जंगलों की आग को नाप भूमि की आग दिखा रहा है। लेकिन जहां जहां आग लगी वह वन भूमि के जंगल थे। वन क्षेत्राधिकारी अल्मोड़ा मोहन राम से जब इस बारे में बात की गई तो उनका कहना था कि खेतों में पिरूल जलाने के कारण नाप खेतों में आग लगने की घटनाएं सामने आई। फिलहाल वन विभाग की सफाई और ग्रामीणों के आरोपों के बीच पिछले दिनों हुई बारिश इन घटनाओं के बीच राहत लेकर आई है। जंगलों में लगी आग लगभग बुझ चुकी है और विभाग के अधिकारियों ने भी चैन की सांस ली है।