रिपोर्ट – दीपांशु पांडे
अल्मोड़ा। उत्तराखंड में लगातार रोडवेज कर्मचारियों की समस्याएं बनी रहती हैं। अपनी मांगों को लेकर रोडवेज कर्मचारी धरने तक कर चुके हैं लेकिन अभी तक समस्याओं का कोई समाधान नहीं हो पा रहा है। कोरोना महामारी के दौरान देश भर में लगाए गए लॉकडाउन ने जहां सब कारोबार ठप किए थे वहीं प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए आपदा को अवसर में बदलने की जब बात कही तब से अब तक लगातार प्राइवेट टैक्सी चालक यात्रियों से मनमाना किराया वसूल रहे हैं। हालांकि बीच में लॉकडाउन खुलने से ये मनमानी कुछ कम हुई थी लेकिन कोरोना महामारी की दूसरी लहर से लगे लॉकडाउन और कोविड कर्फ्यू ने इस मनमानी को फिर से शुरू कर जनता की जेब पर सीधी चोट की और ये मनमानी अब भी बरकरार है। सरकार द्वारा ज़ारी किए आदेश में सामान्य किराया लेने की बात तो की थी लेकिन आधी सवारियों की गाइडलाइंस के कारण किराए की मनमानी पर रोक नहीं लगी।
एक तरफ तो प्राइवेट टैक्सी चालकों की ये मनमानी है वहीं दूसरी तरफ वर्ष 2013 से रोडवेज बस चालक और परिचालक समस्या से जूझ रहे हैं। दरअसल रोडवेज एक सरकारी विभाग है लेकिन वर्ष 2013 से रोडवेज बस के चालक और परिचालक संविदा के तहत कार्य पर रखे गए। सरकारी ऑर्डर के अनुसार 5 वर्षों तक नियमित कार्य करने पर चालक अथवा परिचालक को सरकारी किया जाना चाहिए था परन्तु 8 वर्ष होने के बावजूद भी ऐसा नहीं हुआ है। कोर्ट ने ‘समान कार्य, समान वेतन’ का आदेश ज़ारी किया था और विभाग का कहना है कि कर्मचारियों को समान कार्य के बदले समान वेतन दिया जा रहा है परन्तु धरातल में वेतन में ज़मीन आसमान का अंतर है। उत्तराखंड में संविदा और विशिष्ट श्रेणी एजेंसी के तहत रखे गए कर्मचारियों (चालक, परिचालक) को मात्र आठ से दस हज़ार रुपए प्रतिमाह निर्धारित किया है जबकि बिहार और उत्तरप्रदेश में सरकारी आदेश का पालन करते हुए चालक और परिचालकों को नियमित कर दिया गया है और मानदेय भी निर्धारित और समान है। उत्तराखंड में इतने कम वेतन के बावजूद भी तमाम चोंचले हैं। इन कर्मचारियों का वेतन किलोमीटर पर निर्भर करता है। यदि अपरिहार्य कारणों से इन्हें काम से छुट्टी लेनी हो तो इनका वेतन काट लिया जाता है। सरकार द्वारा इनके रहने, खाने की व्यवस्था भी नहीं की जाती है सारा ख़र्च इन्हें अपने आप ही वहन करना पड़ता है। गाड़ी चलाते समय यदि किन्हीं कारण गाड़ी के पहियों में कट लग जाए या गाड़ी में दुर्घटना में टक्कर लग जाए या शीशा टूट जाए (आपदा के अलावा) या औसत से अधिक पेट्रोल ख़र्च हो जाए तो उसकी पूरी भरपाई चालक को अपनी जेब से करनी होती है।
एक रोडवेज बस चालक ने बताया कि वो 2013 से सेवा दे रहे हैं परन्तु उन्हें अभी तक नियमित नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि उनका वेतन किलोमीटर के हिसाब से तय किया जाता है। यदि तकनीकी ख़राबी आ जाने के कारण बस नहीं चल पाई तो उन्हें शेष वेतन नहीं मिलेगा। एक अन्य चालक ने बताया कि प्रथम तो वेतन ही कम है और इसके बावजूद भी सरकार लंबे वक़्त तक वेतन रोक लेती है जिस कारण भारी कठिनाइयां होती हैं। उन्होंने कहा कि वो अक्सर पीएफ निकालकर परिवार का ख़र्च चलाते हैं क्योंकि वेतन से कुछ भी शेष नहीं रह पाता। उन्होंने कहा कि पहले पीएफ समय पर कट जाता था परंतु कोरोना की वजह से 2020 से पीएफ नहीं कटा। उन्होंने कहा कि इतनी मेहनत करने के बावजूद भी सम्मानजनक वेतन उन्हें नहीं दिया जाता। एक अन्य बस चालक ने दुविधाएं बताते हुए कहा कि वर्ष 2019 से चालकों और परिचालकों के लिए यहां ड्रेस कोड लागू तो हो गया पर सरकार ने इसकी कोई व्यवस्था नहीं की और जूतों से लेकर वर्दी का ख़र्च भी ख़ुद करना होता है। उन्होंने व्यवस्थाओं पर तंज और व्यंग्य करते हुए कहा कि “बस तो चला लेते हैं परंतु परिवार नहीं चला पा रहे हैं।
रोडवेज कर्मचारियों के लिए सरकार की तरफ से पास की सुविधा होती है ताकि यदि उन्हें परिवार के साथ भी सफर करना हो तो उन्हें शुल्क नहीं देना होता है। इसके लिए सरकार इन कर्मचारियों को एक विशिष्ट पास की सुविधा उपलब्ध करवाती है जिसे रीन्यू करवाना होता है। परन्तु पिछले वर्ष से ना ही कोई नया पास बना और ना ही पुराना पास रीन्यू करवाए गए। पास रीन्यू ना हो पाने के कारण कर्मचारियों और उनके परिवार का बस में सफर करने पर शुल्क पड़ रहा है। सरकार पास रीन्यू ना हो पाने के पीछे कोरोना को दोषी ठहरा रही है।
सरकार ने इन दिनों इन कर्मचारियों के लिए दुर्घटना से मृत्यु हो जाने पर मुवावजे की व्यवस्था की है। यह व्यवस्था कोविड से पहले नहीं की गई थी। परन्तु मुवावजे की व्यवस्था की घोषणा तो हो गई परन्तु कोविड के कारण मौत का शिकार हुए चालकों और परिचालकों के परिवारों को अभी तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया है।
एक परिचालक ने बताया कि मुआवजा तो दूर की बात कोरोना काल से उन्हें महंगाई भत्ता तक नहीं दिया गया है। लगातार बढ़ रही महंगाई और सरकार की लापरवाही के कारण उनके पूरे परिवार पर आजीविका का संकट बढ़ रहा है। सरकार का इस विषय में कहना है कि राजस्व में लगातार भारी कमी आने के कारण अव्यवस्थाएं हो रही हैं जिसके समाधान की कोशिश ज़ारी है।