अल्मोड़ा के जिला पुस्तकालय के पास किताबों की भरमार है लेकिन विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए नहीं हैं। एक करोड़ रुपये की लागत से नवनिर्मित जिला पुस्तकालय भवन में किताबें रखने के लिए पर्याप्त जगह ही नहीं है। इस कारण जिला पुस्तकालय निर्माण के दौरान जीआईसी अल्मोड़ा और स्काउट- गाइड कार्यालय में रखी गईं 60,000 से अधिक महत्वपूर्ण किताबें अब तक वहीं पड़ी हैं। कई दशक पुरानी किताबों की सही से देखरेख न होने की वजह से बड़ी संख्या में किताबों को दीमक चट कर रही है और नष्ट होने के कगार पर हैं। जबकि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवा किताबों के लिए इधर उधर भटक रहे हैं। वर्ष 1960 में नगर के माल रोड पर चौघानपाटा के पास जिला पुस्तकालय बनाया गया था। इस पुस्तकालय भवन के जीर्णशीर्ण होने पर हाल में इसका पुनर्निर्माण किया गया। इस कारण वहां उपलब्ध दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, प्राचीन इतिहास, सामाजिक विज्ञान, साहित्य, अध्यात्म, राजनीतिशास्त्र समेत विभिन्न विषयों की 60,000 से अधिक पुस्तकें जीआईसी परिसर और स्काउट-गाइड कार्यालय में रखी गईं थीं लेकिन वहां उचित रखरखाव न होने के कारण ये पुस्तकें खराब होने लगी हैं। स्थिति यह है कि अब इनमें से तमाम पुस्तकें दीमक का निवाला बन रहीं हैं। पुस्तकालय भवन बनने के बाद अब भी इन पुस्तकों को नये भवन में रखने के प्रयास नहीं किए गए। जबकि इनमें से अधिकतर कई दशक पुरानी किताबों का प्रकाशन अब बंद हो गया है इसलिए अब इन पुस्तकों को दुर्लभ माना जा रहा है। पुस्तक प्रेमियों का कहना है कि यदि शीघ्र इन पुस्तकों को रखने की सही व्यवस्था नहीं की गई तो लाखों की बेशकीमती पुस्तकें पूरी तरह नष्ट हो जाएंगी।
करीब एक करोड़ रुपये की लागत से पुस्तकालय भवन का पुनर्निर्माण होने से यहां पढ़ने आने वाले युवाओं को बेहतर सुविधा मिलने की उम्मीद थी लेकिन युवाओं को कई किताबें पढ़ने के लिए नहीं मिल पा रहीं हैं, जिससे वह परेशान हैं। इस पुस्तकालय में पहले 70,000 से अधिक किताबें थीं लेकिन इनमें से 60,000 किताबें जीआईसी अल्मोड़ा और स्काउट-गाइड कार्यालय भवन में होने से पुस्तकालय में सिर्फ 10,000 पुस्तकें ही बची हैं। इस कारण युवाओं को पढ़ने के लिए पर्याप्त पुस्तकें नहीं मिल पा रहीं हैं। जीआईसी प्रबंधन ने कक्षाओं के संचालन के लिए कक्ष की कमी बताई है। इसलिए स्कूल प्रबंधन ने पुस्तकालय के संचालकों से कमरों में रखीं पुस्तकों को हटाने के लिए कई बार कहा लेकिन जगह की कमी बताकर उन्होंने अपना पल्ला झाड़ लिया। इस कारण पुस्तकों का कोई सुधलेवा नहीं है।