अल्मोड़ा। एक लहर चली थी सियासत में उधर जाने की तो हम भी चल दिए। अब वक्त आ गया है इधर आने का तो हम फिर लौटकर वापस घर आ गए। भले ही ये लाईनें किसी शायर की न हों लेकिन उत्तराखण्ड की मौजूदा सियासत पर सटीक बैठती हैं। आज उत्तराखण्ड की राजनीति में एक बार फिर से दलबदल हुआ है, इस दलबदल से जहां भाजपा को बडा झटका मिला है वहीं यह खबर कांग्रेस को संजीवनी देने वाली है। आज भाजपा के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके पुत्र नैनीताल विधायक संजीव आर्य ने एक बार फिर कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया है। यूं तो उत्तराखण्ड की सियासत में यह पहली बार नहीं हो रहा है, इससे पहले भी कई बार कई नेताओं ने पार्टियां बदली हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले यशपाल और संजीव आर्य के कांग्रेस में आने की खबर ने यहां की सियासत में जरूर हलचल मचा दी है। राजनीतिक विशेषज्ञ इसे अलग-अलग तरीके से देखते हुए अलग-अलग बातें कर रहे हैं, जबकि आम लोग इसे उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य बता रहे हैं। लोगों की मानें तो सियासत में दलबदल की खबरें आम हैं, लेकिन इससे आमजन और विकास को कितना फर्क पड़ता है इससे जनप्रतिनिधियों को कोई लेना-देना नहीं होता, उन्हें बस अपनी सियासत चमकाने और फायदे से मतलब होता है। आज जैसे ही यशपाल आर्य और उनके पुत्र ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की वैसे ही सोशल मीडिया पर बयानबाजी का दौर शुरू हो गया। कुछ लोगों ने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट कर इसे कांग्रेस की उपलब्धि बताया तो कुछ ने यशपाल और संजीव को दलबदलू तक कह डाला। यही नहीं कुछ भाजपा नेताओं ने भी इसको लेकर तंज कसे। उधर सोशल मीडिया पर ग्रुपों में भी इसको लेकर अलग-अलग बयानबाजी हुई। कुछ ने बेपैंदी के लौटे कहा तो कुछ ने इसे राजनीतिक फायदा करार दिया। आपको बता दें कि यशपाल आर्य ने 2017 में विधानसभा चुनाव से पहले अपने बेटे संजीव आर्य के साथ कांग्रेस को झटका देते हुए भाजपा का दामन थामा था। तब देशभर में मोदी लहर चल रही थी तो यशपाल आर्य के बेटे संजीव आर्य ने नैनीताल विधानसभा से किस्मत आजमाते हुए मोदी लहर में अपनी नैय्या भी पार कर ली। वहीं बाजपुर विधानसभा से भाजपा के बैनर तले यशपाल आर्य ने भी चुनाव लड़ा और जीत हांसिल की। हांलाकि यशपाल आर्य पुराने कद्दावर नेताओं में गिनती रखते हैं और भाजपा में जाने से पहले भी वह बाजपुर विधानसभा से विधायक थे और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे। भाजपा में जाने के बाद भले ही यशपाल आर्य ने अपने बेटे संजीव का राजनीतिक भविष्य संवार लिया, लेकिन भाजपा में वह हमेशा अलग-थलग दिखाई दिए। उनकी नाराजगी को लेकर कई बार खबरें सामने आती रहती थी। हाल ही में उनके नाराज होने की खबरों ने जोर पकड़ा था तब प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनसे मिलने के लिए उनके आवास पर गए थे और काफी देर तक उनके साथ समय भी बिताया। धामी और यशपाल की मीटिंग के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि अब उनकी नाराजगी दूर हो गयी होगी। लेकिन कल शाम से एकाएक यशपाल के कांग्रेस में जाने की खबरों ने जोर पकड़ लिया। सोशल मीडिया में इसको लेकर खबरों का दौर शुरू हो गया जो आज सुबह 11 बजे तक चला। इन तमाम अटकलों पर विराम उस समय लगा जब यशपाल आर्य कांग्रेस नेताओं के साथ एक मंच पर दिखाई दिए। उनके कांग्रेस में जाने के बाद सोशल मीडिया पर फिर से बयानबाजी का दौर शुरू हो गया। कुछ लोगों ने उन्हें दलबदलू कहा तो कुछ ने भाजपा की नीतियों को गलत बताया। पक्ष और विपक्ष दोनों तरफों से यशपाल और संजीव को लेकर अलग-अलग बयानबाजी हुई। लेकिन यशपाल और संजीव के कांग्रेस में जाने के बाद हरीश रावत के उस बयान को लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं जिसमें उन्होंने उत्तराखण्ड को दलित मुख्यमंत्री देने की बात कही। चर्चा यहां तक है कि अगर उत्तराखण्ड में कांग्रेस की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री के रूप में यशपाल आर्य ही सबसे आगे होंगे। फिलहाल यह तो समय के गर्भ में कि आगे क्या होगा, लेकिन कुल मिलाकर इस दलबदल से उत्तराखण्ड की सियासत में हलचल मची हुई है।