11 साल के लंबे इंतजार के बाद जब बेटी को न्याय मिलने की उम्मीद जगी तो कोर्ट के फैसले ने बेबस माता-पिता के साथ हर किसी को हैरान कर दिया। हांलाकि कोर्ट का फैसला सर्वोपरि है, जिसपर अल्मोड़ा टुडे टिप्पणी नहीं करता। लेकिन दिल्ली के छावला गैंगरेप के आरोपियों के बरी होने के बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं। पहला सवाल- कोर्ट ने जिन आरोपितों को बरी किया है अगर वो बेकसूर हैं तो उत्तराखण्ड की बेटी के साथ दरिंदगी किसने की? दूसरा सवाल- इतने गंभीर मामले में पुलिस की लापरवाही आज तक उजागर क्यों नहीं हुई जो अब सामने आ रही है। ऐसे कई सवाल हैं जो रह-रहकर हर किसी को सता रहे हैं। आंखों में बेबसी के आंसू लिए बूढे माता-पिता को कल तक न्याय की उम्मीद थी, लेकिन जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया तो वह पूरी तरह टूट गए। इन सबके बीच एक बड़ा सवाल अब भी लोगों के जहन में घूम रहा है कि आखिर उत्तराखण्ड की बेटी से हैवानियत करने वाले दोषी कौन हैं? हांलाकि कुछ सामाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील करने की बात कही है और आगे की रणनीति बनाने के लिए आज मंगलवार को उत्तराखंड के सभी सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों की बैठक पचकुइयां रोड स्थित गढ़वाल भवन में बुलाई गई है।
उधर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद एक बहस छिड़ गई है। उत्तराखंड लोक मंच के अध्यक्ष बृजमोहन उप्रेती ने कहा कि अगर लोअर के बाद हाई कोर्ट से 2014 में फांसी की सजा पाने वाले ये तीनों आरोपी रेप और हत्या के दोषी नहीं हैं तो फिर कौन हैं? मेडिकल रिपोर्ट में बर्बरता और हत्या की पुष्टि हुई ही थी। अब ये कौन बताएगा कि कौन हत्यारे थे और किसने वीभत्स रेप को अंजाम दिया था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील की जाएगी।
उत्तराखंड एकता मंच के संयोजक और बीजेपी मयूर विहार के जिला अध्यक्ष विनोद बछेती ने कहा कि 2012 से लगातार न्याय के लिए संघर्ष किया है। इसलिए हार मानने का सवाल ही नहीं है। ये जरूर है कि इस फैसले से हैरानी तो हुई है, लेकिन वो न्यायपालिका का सम्मान करते हैं। लेकिन इस फैसले के खिलाफ अपील की जाएगी और राष्ट्रपति तक से गुहार लगाई जाएगी। पूरा समाज मृतका के परिवार के साथ खड़ा है और न्याय दिलाने की लड़ाई जारी रहेगी।